वनस्‍पति जैवसुरक्षा प्रभाग

प्रशिक्षण कार्यक्रम विवरण

पादप जैवसुरक्षा एक रणनीतिक और एकीकृत दृष्टिकोण है जिसमें पादप स्वास्थ्य के जोखिमों का विश्लेषण और प्रबंधन करने के लिए नीति और नियामक ढांचे शामिल हैं। यह समग्र रूप से खाद्य और कृषि से जुड़े जैविक जोखिमों के प्रबंधन का एक अभ्यास है। वैश्वीकरण के युग में, पादप जैव सुरक्षा चिंता के एक महत्वपूर्ण पहलू के रूप में उभरा है, जिसे पर्यावरण के लिए ऐसे खतरों को दूर करने और उनसे निपटने के लिए नियमों, नीतियों, तकनीकी क्षमताओं में वृद्धि और मानव क्षमता निर्माण के अधिनियमन की आवश्यकता है। यह तेजी से बढ़ने वाला क्षेत्र है, जो पौध पीड़कों और खाद्य सुरक्षा, व्यापार और बाजार पहुंच पर उनके प्रभावों, अंततः, कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की लाभप्रदता और स्थिरता से संबंधित है । वास्तविक खाद्य और कृषि उत्पादों की बढ़ती मांग, वैश्वीकरण और तकनीकी क्रांतियों के जवाब में अधिकांश देशों की कृषि रूपरेखा तेजी से बदल रही है । इसलिए, पीड़क एवं बीमारियों में भी बदलाव हो रहे हैं ।


भारत में वनस्‍पति संगरोध विनियमन का उद्देश्य देश को कृषि वस्तुओं के आयात के दौरान विदेशी कीटों के प्रवेश से बचाना है । पादप संगरोध प्रणाली, पादप जैव सुरक्षा, विदेशी पौधों के कीटों से जुड़े जोखिम और उनके प्रभावी निवारक नियंत्रण उपायों और पादप उत्पादों के निर्यात के लिए बाजार पहुंच के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए एक अनिवार्य आवश्यकता है । कृषि जैव सुरक्षा को सुदृढ़ करने के लिए, कृषि मंत्रालय, भारत सरकार के तहत कृषि, सहकारिता और किसान कल्याण विभाग ने उपरोक्त क्षेत्र में क्षमता निर्माण के लिए एनआईपीएचएम को एक नोडल केंद्र के रूप में नामित किया है।

I. क्षमता निर्माण कार्यक्रम

यह प्रभाग जैवसुरक्षा एवं आक्रमण प्रबंधन में क्षमता निर्माण प्रशिक्षण कार्यक्रम एवं शैक्षणिक कार्यक्रम का आयोजन करता है तथा एसपीएस अनुपालन को बढ़ावा देने के लिए विशेष क्षमता निर्माण कार्यक्रम का आयोजन करता है । इसके अलावा, डीपीपीक्‍यूएस एवं एनएसीईएन के अधिकारियों के लिए नियमित प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यशाला, अंतर्राष्‍ट्रीय कार्यक्रम एवं विशेष कार्यक्रमों का संचालन करता है ।

क. शैक्षणिक कार्यक्रम

पादप जैवसुरक्षा पर मोक

इस पाठ्यक्रम का मुख्‍य उद्देश्‍य आक्रमक पादप पीड़क चुनौतियों से सामना करने, इस तरह की चुनौतियों को हल करने के लिए तकनीकी क्षमताओं एवं पादपस्‍वच्‍छता के अनुपालन में संवर्धन हेतु पादप जैवसुरक्षा एवं संगरोध पद्धतियों के प्रति जागरूक करना है । पादप जैवसुरक्षा किसी भी देश के लिए खाद्य सुरक्षा, सतत् कृषि/बागवानी उत्‍पादन एवं लोगों के जीविकोपार्जन की सुरक्षा के दृष्‍टिकोणों से बहुत ही महत्‍वपूर्ण है । यह एक तत्‍काल मुद्दा के तौर पर उभर चुकी है एवं इन चुनौतियों से लड़़ने के लिए विनियमनों एवं नीतियों के क्रियान्‍वयन, प्रौद्योगिकीय क्षमताओं एवं मानव क्षमता निर्माण के संर्वधन की जरूरत है ।

कृंतक एवं घरेलू पीड़क प्रबंधन

देश के बदलते सार्वजनिक स्वास्थ्य परिदृश्य में संगठित वाणिज्यिक पीड़क नियंत्रण प्रचालनों की आवश्यकता है । इसके बदले में, शहरी और उप-शहरी क्षेत्रों और उपन्यास प्रबंधन तकनीकों आदि में समस्याग्रस्त पीड़कों की पहचान के विभिन्न पहलुओं के प्रबंधन के लिए तकनीकी रूप से योग्य श्रमशक्‍ति की मांग बढेगी । पाठ्यक्रम का उद्देश्य कीट नियंत्रण पेशेवरों का एक दल तैयार करना है, जिनमें पीड़क नियंत्रण संचालन की कौशल एवं प्रबंधन करने की क्षमता विकसित हो सके एवं उनमें जीव विज्ञान, पहचान, आवास और कृन्तकों और घरेलू कीट कीटों के प्रबंधन के बारे में नवीनतम ज्ञान और समझ भी विकसित हो ।

ख.निजी क्षेत्र हेतु कार्यक्रम

1. पादप जैवसुरक्षा एवं आक्रमक प्रबंधन

परिवहन, यात्रा, पर्यटन सहित व्‍यापार में उदारीकरण से तीव्र भुमंडलीयकरण एवं प्रगति होने से देश के भीतर उत्‍तेजक एवं आक्रमक पीड़कों के जोखिम में वृद्धि हुई है । विदेशी पौध पीड़क जो भारत में प्रवेश कर चुके हैं, वे कृषि उत्‍पादों की आर्थिक क्षति पहुंचा रहे हैं । इसलिए, 12 दिनों की अवधि की इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में प्रतिभागियों को जैवसुरक्षा अवधारणाएं, आक्रमक विदेशी प्रजातियों के प्रभाव, उत्‍तेजक पीड़क संबंधी चुनौतियां, पीड़क जोखिम विश्‍लेषण एवं पौध निवेश प्रबंधन के बारे में जानकारी मुहैया करवायी जाती हैं ।

2. संगरोध कीट : जांच एवं पहचान

कीट पीड़कों के कारण फील्‍ड एवं भंडार में काफी क्षति पहुंचती है । इसलिए, यह केवल जैवसुरक्षा के लिए ही नहीं, बल्‍कि खाद्य सुरक्षा के लिए भी खतरनाक माना जाता है । कीट पीड़कों की रोकथाम, उसके निवास एवं भारत में पीड़कों के फैलने संबंधी समस्‍याओं के लिए कीट पीड़कों की पहचान करने हेतु विश्‍वसनीय जांच प्रणाली, सटीकता एवं समय-समय पर निदान करना आवश्‍यक हैं । प्रतिभागी इस प्रशिक्षण पाठ्यम में संगरोध की अवधारणाओं, संगरोध पीड़कों, विनियमित पीड़कों, भारत में आने वाले पीड़कों से होने वाले आर्थिक प्रभाव, भारत के लिए संगरोध महत्‍व के लिए महत्‍वपूर्ण कीटों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है । प्रतिभागियों को कृषि, बागवानी, पौरोपण फसलों एवं वन्‍य पेड़ों, विधियों एवं प्रोटोकोलों एवं कीट पीड़कों के पहचान के लिए ऑनलाइन टूलों के बारे में बतलाया जाता है । प्रशिक्षार्थी अपने हाथ से कीट नमूनों का संग्रहण, पिनिंग एवं संरक्षण करने तथा निदान केन्‍द्रों को पहचान करने हेतु नमूनों को भेजना आदि कार्यों का निष्‍पादन कर अनुभव प्राप्‍त करता है ।

3. संगरोध रोगाणु : बीज स्‍वास्‍थ्‍य परीक्षण एवं अणु निदान तकनीक

बीज फसल उत्‍पादन के लिए नींव है एवं बीज स्‍वास्‍थ्‍य कई तरह से खाद्य उत्‍पादन से संबंधित है । स्‍वास्‍थ्‍य बीज संक्रमित रोगाणुओं से स्‍वतंत्र होता है एवं सतत् खाद्य उत्‍पादन से पूर्व बहुत जरूरी है । उत्‍तेजक पीड़कों/रोगाणुओं के फैलने, उनके ठहरने एवं प्रवेश की रोकथाम हेतु अपने क्षेत्र में बीजों को प्रवेश की अनुमति देने से पहले एनपीपीओ द्वारा लागू बीज स्‍वास्‍थ्‍य परीक्षण के लिए पादपस्‍वच्‍छता जरूरी है । इसे ध्‍यान में रखते हेतु बीज स्‍वास्‍थ्‍य परीक्षण एवं अणु निदान तकनीकों के क्षेत्र में विशेषज्ञों का दल तैयार करने के लिए पॉंच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है ।

4. पीड़क निगरानी

पीड़क निगरानी कृषि के स्‍वास्‍थ्‍य स्‍थिति एवं उत्‍तेजक पीड़कों की आक्रमक चुनौतियों से देशीय कृषि जैवविविधता के सुरक्षा के साथ घरेलू पीड़कों की गंभीर समस्‍यों को हल करने एवं तैयारी को मजबूत करने के बारे में जानकारी प्रदान करता है । पॉंच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के दौरान प्रतिभागी विभिन्‍न पीड़क निगरानी रणनीतियों जैसे : जांच, निगरानी एवं परिसीमन सर्वेक्षण के बारे में सीखता है ।

5. संग्रहीत अनाज पीड़क पहचान एवं जांच

संग्रहीत अनाज एवं संग्रहीत उत्‍पादों से व्‍यापार में वृद्धि होने से जैवसुरक्षा संबंधी समस्‍याएं उत्‍पन्‍न हो रही हैं । अन्‍तर्राष्‍ट्रीय अनाज के आवगमनों से जैवसुरक्षा संरक्षण एवं विपणन अधिगम के लिए निरंतर समस्‍याएं बन रही हैं । उचित पादपस्‍वच्‍छता उपचार के लिए इस तरह के पीड़कों की जांच एवं पहचान करना आवश्‍यक है । पॉंच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत् प्रतिभागियों को विभिन्‍न संग्रहीत कीट पीड़कों की पहचान एवं कीट पीड़कों की जांच करने हेतु नमूना एवं सैम्‍पलिंग विधियों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है ।

6. फल मक्‍खी निगरानी एवं प्रबंधन

फल मक्‍खियां ताजे उत्‍पादनों के साथ आर्थिक रूप से महत्‍वपूर्ण फलों एवं सब्‍जियों के निर्यात में मुख्‍य बाधक माना जाता है एवं क्षति के लिए उत्‍तरदायी है । फल मक्‍खी निगरानी एवं प्रबंधन विषयों पर प्रतिभागियों को फल मक्‍खी जैवविज्ञान, वर्गीकरण, फल मक्‍खी पहचान, उत्‍तेजक फल मक्‍खियों एवं उनके प्रवेश के मार्ग तथा फल मक्‍खी निगरानी के बारे में पॉंच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत् प्रशिक्षण दिया जाता है । निगरानी, पारंपरिक नियंत्रण को अपनाते हेतु फल मक्‍खियों का पूर्व कटायी प्रबंधन, प्रलोभन चारा का इस्‍तेमाल कर ट्रेपिंग करना, फल मक्‍खियों के व्‍यापक क्षेत्र में प्रबंधन के लिए जैविक नियंत्रण एजेंटों एवं स्‍टर्लिन कीट तकनीकों के बारे में बतलाया जाता है ।

7. पीईक्‍यू निरीक्षण अधिकारियों के लिए अभिविन्‍यास

अभिविन्‍यास विषय पर पॉंच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत् पीईक्‍यू निरीक्षण प्राधिकारियों को राष्‍ट्रीय सुरक्षा के हित में उत्‍तेजक पीड़कों के नियंत्रण करने, खुले फील्‍ड की स्‍थापना एवं प्रमाणन के लिए या बंद पीईक्‍यू सुविधाओं को अपनाये जाने संबंधी प्रोटोकॉल का अनुसरण करने की भूमिका एवं निरीक्षण की जिम्‍मेदारियों के प्रति अवगत कराया जाता है । इस कार्यक्रम के तहत् अपेक्षित अंतराल पर पीईक्‍यू निरीक्षणों के महत्‍व, जांच के कौशल एवं संगरोधी पीड़कों की पहचान, नमूनों का संरक्षण, प्राधिकरण हेतु नोडल प्रयोगशालाओं के नमूनों को भेजने, संगरोध पीड़कों की जांच में उचित कम करने के उपायों का इस्‍तेमाल करने, मानक प्रचालन प्रक्रिया के अनुसार पौध संबंधी सामग्रियों के निर्यात हेतु अनुपालन एवं पीईक्‍यू से निकासी संबंधी रिपोर्ट के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है ।

8. आयात एवं निर्यात हेतु वनस्‍पति संगरोध प्रक्रियाएं :

पॉंच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम में ‘आयात एवं निर्यात हेतु वनस्‍पति संगरोध प्रक्रियाएं’ में एसपीएस करार के महत्‍व, अन्‍तर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलनों, राष्‍ट्रीय विनियमों, आयात एवं निर्यात संबंधी एसओपी जैसे विषयों के बारे में प्रशिक्षण दिया जाता है । इसके अलावा, प्रतिभागियों को मॉक अभ्‍यास एवं प्रैक्‍टिकल परिदृश्‍यों के माध्‍यम से ऑनलाइन पीक्‍यूआईएस साफ्टवेयर के इस्‍तेमाल एवं बीजों, पौधों, बल्‍ब, अनाजों, फलों, जीएमओ, जर्मप्‍लाज्‍म एवं जैव-नियंत्रण एजेंटों के आयात एवं निर्यात संबंधी प्रक्रियाओं के बारे में बतलाया जाता है ।

9. पीड़क जोखिम विश्‍लेषण :

अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार करते समय किसी भी राष्‍ट्र को विदेशी पीड़कों की समस्‍याओं को हल करने के लिए पीड़क जोखिम विश्‍लेषण (पीआरए) एक वैज्ञानिक आधारित औजार है । पीआरए एक प्रक्रिया है जो उत्‍तजेक पीड़कों के प्रेवश करने, उनके ठहरने एवं फैलने की रोकथाम हेतु जोखिमों को निर्धारण करने में मदद करता है । आईपीपीसी द्वारा लाये गए अन्‍तर्राष्‍ट्रीय मानकों के आधार पर यथा दिशानिर्देशानुसार पीआरए का निष्‍पादन करता है ।

प्रतिभागी अन्‍तर्राष्‍ट्रीय सम्‍मेलनों एवं राष्‍ट्रीय विनियमों, एसपीएस नियमों, जोखिम की अवधारणा एवं जोखिम विश्‍लेषण, पीड़कों के निर्धारण हेतु पीआरए प्रक्रिया, पीड़कों के फैलने एवं उनके निवास को लेकर प्रत्‍यक्ष एवं अप्रत्‍यक्ष तौर पर पड़ने वाले प्रभाव एवं मॉक अभ्‍यास के माध्‍यम से अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार में नये सामग्रियों के पहुंच हेतु पीआर के महत्‍व के बारे में सीखता है ।

10. पादपस्‍वच्‍छता प्रमाणन (पीएससी) निर्गम पदाधिकारियों के लिए अभिविन्‍यास

व्‍यापार कृषि सामग्रियों में पौध पीड़कों के ग्‍लोबल आवगमन को रोकथाम हेतु आईपीपीसी सदस्‍य देशों द्वारा लागू मूल उपायों में से पादपस्‍वच्‍छता प्रमाणन एक है । सुरक्षित व्‍यापार को बढ़ावा देने के लिए निरीक्षण, नमूना, परीक्षण एवं उपचार का निष्‍पादन करने के बाद वनस्‍पति स्‍वास्‍थ्‍य प्रमाणपत्र के तौर पर निर्यात संबंधी एनपीपीओ द्वारा पादपस्‍वच्‍छता प्रमाणपत्र जारी किये जाते हैं । सुरक्षित कृषि व्‍यापार को बढ़ावा देने के लिए प्रतिभागी आईपीपीसी के तहत् अन्‍तर्राष्‍ट्रीय विनियमों एवं दायित्‍वों, एनपीपीओ की भूमिका एवं जिम्‍मेदारियों एवं पीएससी निंर्गम प्राधिकारियों के बारे में सीखता है । इसके अलावा, प्रतिभागी निरीक्षण एवं सैंपलिंग के लिए ऑनलाइन पीक्‍यूआईएस का इस्‍तेमाल करने, आयायित देशों के गंभीर पीड़कों के लिए परीक्षण करने, आयायित देशों के विनयमों के बारे में सीखते हैं ।

11. पादपस्‍वच्‍छता उपचार के रूप में विकिरण

अन्‍तर्राष्‍ट्रीय बाजार में कृषि सामग्रियों के बढ़ते आवगमन से जैवसुरक्षा एवं विपणन अधिगम निगोसिएशन दोनों निरंतर समस्‍या बनकर उभर रहे हैं । अन्‍तर्राष्‍ट्रीय बाजार में उत्‍तेजक पीड़कों की रोकथाम हेतु पीड़क जोखिम प्रबंधन विकल्‍प के तौर पर पादपस्‍वच्‍छता उपचार जैसे फूमिगेशन, शीत उपचार, फोर्सड् हॉट हवा उपचार, गर्म जल इमरजन उपचार एवं विकिरण का इस्‍तेमाल किया जाता है । कुछ देश ताजे एवं सब्‍जियों के निर्यात एवं आयात में पादपस्‍वच्‍छता उपचार के तौर पर विकिरण का उपयोग करते हैं ।
आईपीपीसी ने ‘पादपस्‍वच्‍छता उपचार के तौर विकिरण के इस्‍तेमाल हेतु दिशानिर्देश’ –आईएसपीएम-18’ हेतु विशेष मानक विकसित किये हैं । भारत के एनपीपीओ ने एनएसपीएम-21 विकसित किया है, जो पादपस्‍वच्‍छता जरूरतों को पूरा करने के लिए विकिरण उपचार सुविधाओं के प्रमाणन हेतु दिशानिर्देश देता है ।
पादपस्‍वच्‍छता उपचार के तौर पर विकिरण के बारे में जागरूक करने के लिए एनआईपीएचएम ‘पादपस्‍वच्‍छता उपचार के तौर पर विकिरण’ विषय पर पॉच दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करता है ।

ग. निजी क्षेत्र हेतु कार्यक्रम

1. पादपस्‍वच्‍छता सेवा एजेंसी हेतु पादपस्‍वच्‍छता निरीक्षण प्रशिक्षण एवं निर्यात में पौधे/पौधे से बने उत्‍पादों के निरीक्षण हेतु पादपस्‍वच्‍छता सेवा प्रदानकर्ता

एनआईपीएचएम के पादप जैवसुरक्षा प्रभाग एनएसपीएम-23 के अनुपालन में पादपस्‍वच्‍छता निरीक्षण एवं प्रमाणन के निष्‍पादन के लिए तकनीकी कौशल एवं सक्षम बनाने के उद्देश्‍य से ‘पादपस्‍वच्‍छता सेवा एजेंसी हेतु पादपस्‍वच्‍छता निरीक्षण प्रशिक्षण एवं निर्यात में पौधे/पौधे से बने उत्‍पादों के निरीक्षण हेतु पादपस्‍वच्‍छता सेवा प्रदानकर्ता’ विषय पर विशेष एक माह का प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन करता आ रहा है । यह प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रतिभागियों को तकनीकी कौशल एवं पादपस्‍वच्‍छता निरीक्षण करने में सक्षम बनाता है ।

2. पादपस्‍वच्‍छता उपचार

पादपस्‍वच्‍छता उपचार निर्यात स्‍थल पर एक मात्र समाधान प्रदान करता है । कृषि उत्‍पादों में बढ़ते व्‍यापार के साथ देशों या क्षेत्रों में प्रवेश स्‍थल पर संगरोध पीड़कों की जोखिम में वृद्धि हुई है । संगरोध पीड़क केवल दो देशों के बीच नये कृषि उत्‍पादों के व्‍यापार में गंभीर संकट पैदा ही नहीं करता है । बल्‍कि, देशों के भीतर भौगोलिक क्षेत्रों में भी जब तक स्‍वीकृत कटायी संगरोध उपचार उपलब्‍ध नहीं हो जाता है । पादपस्‍वच्‍छता उपचार जैवसुरक्षा एवं बाजार तक पहुंच बनाने में मदद कर रहा है । कई प्रशिक्षण कार्यक्रमों में पादपस्‍वच्‍छता उपचार हेतु प्रशिक्षण दिये जाते हैं ।

क. पादपस्‍वच्‍छता उपचार के तौर पर फुमिगेशन (मिथाईल ब्रोमाइड एवं एल्‍युमिनियम फास्‍फाइड फूमिगेशन) ::

फूमिगेशन पादपस्‍वच्‍छता उपचारों में अधिकांशत: स्‍वीकृत उपचार है । फूमिगेशन उपचार अन्‍तर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार में कृषि सामग्रियों के आयात एवं निर्यात के आवश्‍यक एवं महत्‍वपूर्ण है एवं पादपस्‍वच्‍छता उपचारों की सफलता में निर्धारित कौशलों को दर्शाता है । एनआईपीएचएम कीटनाशक नियमावली 1971 अध्‍याय – III-10, 3(क) के तहत् अधिसूचित संस्‍थानों में से एक है, जो फूमिगेशन हेतु मिथाइल ब्रोमाइड एवं फास्‍फाइन करने वाले वाणिज्‍यिक पीड़क नियंत्रण प्रचालकों के लिए प्रशिक्षण प्रदान करता है । प्रतिभागी प्रशिक्षण के दौरान अनुमोदित फूमिगेशन, उसके भौतिक एवं रासायनिक गुणों, फूमिगेशनों के रखरखाव हेतु अपनाये जाने वाले सुरक्षा उपायों, फूमिगेशन के कार्य के तरीके, फूमिगेशन के सिद्धांतों, फूमिगेशन कॉंस्‍ट्रेशन की निगरानी, फूमिगेंट के रखरखाव एवं उचित इस्‍तेमाल एवं सुरक्षा उपकरणों के बारे जानकारी प्राप्‍त करते हैं । इसके अलावा, प्रतिभागियों को एनएसपीएम-11, 12 (मिथाईल ब्रोमाइड फूमिगेशन) एवं एनएसपीएम-22 (फास्‍फाइन फूमिगेशन) में डीपीक्‍यू एवं एस निदेशालय के निर्धारित फूमिगेशन प्रचालकों के प्रत्‍यायन प्रक्रिया के साथ उचित फूमिगेशन प्रक्रियाओं के संचालन हेतु दिये गए दिशानिर्देशों के बारे में जानकारी मिलती है । एनआईपीएचएम में ‘प्रबंधन जैवसुरक्षा उपचार प्रणाली’ विषय पर तीन दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है ।

ख) फोर्सड् गर्म हवा उपचार (एफएचएटी):

विश्‍वभर में लकड़ी पीड़कों के प्रवेश के लिए पैकेजिंग सामग्री सबसे चुनौतीपूर्ण है । फोर्सड् गर्म हवा उपचार (एफएचएटी) आईएसपीएम-15 के तहत् पैकेजिंग सामग्री के लिए अनुमोदित उपचारों में से है । फोर्सड् गर्म हवा उपचार (एनएसपीएम-19) के लिए राष्‍ट्रीय मानक विकसित किये गए हैं, जिसमें उपचार प्रक्रियों एवं पंजीकरण के बारे में उल्‍लेख मिलता है । एफएचएटी सुविधाओं को सुनिश्‍चित करने के लिए यह प्रमाणित करना आवश्‍यक है कि आईएसपीएम-15 के प्रावधानों के अनुसार लकड़ी पैकेजिंग सामग्री का उपचार किया गया है एवं निरंतर चिन्‍हि्त की गई है । एनआईपीएचएम ही भारत में एकमात्र संस्‍थान है, जो उद्योग अंशधारकों के लिए एफएचएटी पर विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करता है । प्रतिभागी आईएसपीएम-15 एवं एनएसपीएम-9 के अनुसार एफएचएटी सुविधाओं की स्‍थापना हेतु जरूरतों, सेंसरों का अंशाकंन, सेंसर का विस्‍थापन, सबसे ठंड स्‍थल की पहचान, सुरक्षा उपायों, उपचारों का संचालन, उचित मार्क का इस्‍तेमाल एवं रिकॉर्ड के रखरखाव के बारे में जानकारी हासिल करते हैं ।

कशेरूकीय एवं शहरी पीड़क प्रबंधन

कृंतक पीडक कृषि, बागवानी, खाद्य अनाज एवं सामग्री भंडारण एवं आम जनता के स्‍वास्‍थ्‍य क्षेत्रों में चिंता का विषय है । इनके द्वारा अनाज, दाल, तिलहन एवं पौध फसलों की उत्‍पादकता को नुकसान पहुंचता है, जिसके कारण 5 से 15 प्रतिशत तक फसलों की क्षति होती है । कृंतकों के कारण देश में खाद्य अनाजों एवं सामग्री भंडारण में करीबन 2.5 प्रतिशत नुकसान होता है । कृंतक आम जनता के स्‍वाथ्‍य को प्रभावित करता है । जूनोटिक रोग जैसे प्‍लेग, लेप्‍टोस्‍पिरोसिस, स्‍क्रब, टायफस, लिशमेनिओसिस, म्‍यूरिन टायफस एवं सालमोनेल्‍ओसिस फैलाता है ।

बढ़ते शहरीकरण एवं जलवायु में विविधता के कारण कुछ देशों में कृंतक की समस्‍याएं तेजी से फैल रही हैं । सन् 1967 से देश के भीतर एवं विदेश में संस्‍थान का कृंतक पीड़क एवं रोगवाहक प्रबंधन में महत्‍वपूर्ण योगदान देने के कारण कृंतक पीड़क प्रबंधन में अग्रणी रहा है । बढ़ते कृंतक समस्‍याओं को देखते हुए कशेरूकीय एवं शहरी पीड़क प्रबंधन प्रभाग (वी एवं यूपीएम) राज्‍य कृषि विश्‍वविद्यालयों, कृषि विस्‍तार कार्यकर्ताओं, पीड़क नियंत्रण पेशेवरों, किसानों आदि के लिए कृंतक, उच्‍च कशेरूकीय एवं शहरी पीड़कों को नियंत्रित करने हेतु संबंधित विभिन्‍न विषयों पर क्षमता निर्माण कार्यक्रम प्रदान करता है ।

राष्‍ट्रीय वनस्‍पति स्‍वास्‍थ्‍य प्रबंधन संस्‍थान अधिसूचित संस्‍थानों में से एक है, जो पीड़क नियंत्रण पेशेवरों के लिए यूआईपीएम प्रशिक्षण प्रदान करता है । प्रशिक्षण पीड़क के जैवविज्ञान, जैवआर्थिक एवं प्रबंधन अभ्‍यासों में कौशल विकसित करने का अवसर प्रदान है तथा जूनोटिक रोगों की फैलने की रोकथाम करने एवं रासायनिक पीड़कनाशियों के सुरक्षित इस्‍तेमाल करने हेतु कौशल विकसित करता है ।

क्षमता निर्माण कार्यक्रम

कृषि एवं बागवानी पारिस्‍थितिकतंत्र में केशरूकीय पीड़कों के जोखिम निर्धारण एवं प्रबंधन पर प्रशिक्षण

कशेरूकीय पीड़कों (नील गाय, जंगली सुअर, कृंतकों, बंदर, पक्षी आदि) के विषय पर एवं विभिन्‍न कृषि फसलों में क्षति रोकने तथा कम करने के लिए भारतीय कृषि विश्‍वविद्यालयों एवं राज्‍य कृषि विश्‍वविद्यालयों के वैज्ञानिकों को ज्ञान प्रदान करना है ।

कृंतक पीड़क प्रबंधन

इस कार्यक्रम का उद्देश्‍य चावल पारिस्‍थितिकतंत्र में कृंतक पीड़क समस्‍याओं, प्रमुख कृंतक पीड़कों के निदान करने एवं उसके प्रबंधन में जैवविज्ञान के बारे में, चावल में हुई क्षति एवं संक्रमण तथा इससे संबंधित विषयों पर समझ विकसित करना है । यह प्रशिक्षण राज्‍य कृषि एवं बागवानी विभागों तथा कृषि विश्‍वविद्यालयों के फील्‍ड स्‍तर के विस्‍तार कर्मियों को प्रदान किया जाता है ।

खाद्य अनाजों के भंडारण में कृंतक पीड़क प्रबंधन

चावल पारिस्‍थितिकतंत्र में कृंतक पीड़क समस्‍याओं, प्रमुख कृंतक पीड़कों के निदान करने एवं उसके प्रबंधन में जैवविज्ञान के बारे में, चावल में हुई क्षति एवं संक्रमण तथा कृंतक पीड़क प्रबंधन के क्रियान्‍वयन हेतु प्रक्रियाओं की समझ विकसित करने के लिए राज्‍य सरकार के अधिकारियों, भारत सरकार के खाद्य निगम, केन्‍द्रीय भंडारण एवं राज्‍य भंडारण गुणवत्‍ता नियंत्रण के अधिकारियों के लिए 05 दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है ।

शहरी एकीकृत पीड़क प्रबंधन पर 15 दिवसीय प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम

कीटनाशक अधिनियम अधिनियम, 1968 के तहत् निर्मित कीटनाशक नियमावली के अनुसार, पीड़क नियंत्रण प्रचालक जो पीड़क नियंत्रण प्रचालन हेतु लाइसेंस के अनुमोदन हेतु आवेदन करते हैं, उन्‍हें कृषि या विज्ञान में स्‍नातक सहित रसायनशास्‍त्र भी एक विषय के तौर एवं ‘शहरी एकीकृत पीड़क प्रबंधन (यूआईपीएम)’ प्रशिक्षण पर कम से कम 15 दिनों का प्रमाणपत्र होने चाहिए । राष्‍ट्रीय वनस्‍पति स्‍वास्‍थ्‍य प्रबंधन संस्‍थान अधिसूचित संस्‍थानों में से एक है, जो पीड़क नियंत्रण पेशेवरों के लिए यूआईपीएम प्रशिक्षण प्रदान करता है । प्रशिक्षण पीड़क के जैवविज्ञान, जैवआर्थिक एवं प्रबंधन अभ्‍यासों में कौशल विकसित करने का अवसर प्रदान है तथा जूनोटिक रोगों की फैलने की रोकथाम करने एवं रासायनिक पीड़कनाशियों के सुरक्षित इस्‍तेमाल करने हेतु कौशल विकसित करता है । वी एवं यूपीएम ने यूआईपीएम पर आज तक की तिथि के अनुसार 15 दिवसीय पाठ्यक्रम शीर्षक पर 24 बैचों में 1500 से अधिक पेशेवरों के प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया ।

गैर-कीट पीड़क प्रबंधन – दीमक, केकड़ा, घोंघा, स्‍लग एवं पक्षी

किसानों को गैर-कीट पीड़कों जैसे दीमक, केकड़ा, घोंघा, स्‍लग एवं पक्षियों से कृषि, बागवानी एवं संबंधित क्षेत्रों में काफी नुकसान पहुंचता है । इसलिए, अनुसंधानकर्ताओं, अकादमियों एवं फील्‍ड विस्‍तार कार्यकर्ताओं को जानकारी एवं प्रशिक्षण दिया जाना आवश्‍यक है । उपर्युक्‍त को देखते हुए, वर्ष 2020 में प्रशिक्षण कार्यक्रम का संचालन किया गया ।

कशेरूकीय पीड़क प्रबंधन – जंगली सूअर, बंदर एवं पक्षियां

प्रशिक्षण का उद्देश्य प्रशिक्षित जनशक्ति तैयार करना और जंगली सूअर, बंदर और पक्षियों जैसे प्रमुख कशेरुकी कीटों के बारे में जागरूकता पैदा करना है और यह विस्तार कार्यकर्ताओं के लिए प्रबंधन तकनीक है।

कशेरूकीय पीड़क प्रबंधन पर किसान प्रशिक्षण (ऑफ कैम्‍पस)

प्रशिक्षण का उद्देश्य जीव विज्ञान, प्रजनन प्रोफ़ाइल, कृन्तकों, जंगली सूअर, बंदर, पक्षियों आदि जैसे प्रमुख कशेरुकी कीटों की नैतिकता के बारे में जागरूकता पैदा करना है, और यह किसानों के लिए प्रबंधन तकनीक है । प्रशिक्षण किसान के इलाके में ऑफ-कैंपस मोड पर दिया जाता है। कृंतक स्थानिक क्षेत्रों और उत्तर पूर्वी राज्यों के किसानों को प्रशिक्षित करने पर अधिक जोर दिया जाता है ।

विस्‍तार अधिकारियों (ऑफ कैम्‍पस) हेतु कृंतक / कशेरूकीय पीड़क प्रबंधन

प्रशिक्षण का उद्देश्य प्रशिक्षित जनशक्ति तैयार करना और जंगली सूअर, बंदर और पक्षियों जैसे प्रमुख कशेरुकी कीटों के बारे में जागरूकता पैदा करना है और यह विस्तार कार्यकर्ताओं के लिए प्रबंधन तकनीक है। प्रशिक्षण किसान के इलाके में ऑफ-कैंपस के आधार पर दिया जाता है । कृंतक स्थानिक क्षेत्रों और उत्तर पूर्वी राज्यों के किसानों को प्रशिक्षित करने पर अधिक जोर दिया जाता है ।

परियोजना

1. यूएसडीए-एनआईपीएचएम सहयोग

राष्ट्रीय पादप स्वास्थ्य प्रबंधन संस्थान पादप जैव सुरक्षा और सतत् स्थायी पादप स्वास्थ्य प्रबंधन में मानव संसाधन और नीति विकास के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रशंसित उत्कृष्टता केंद्र के रूप में उभरने का प्रयास कर रहा है । वनस्‍पति स्वास्थ्य प्रबंधन और पादप जैव सुरक्षा के क्षेत्र में प्रशिक्षण, अनुसंधान और नीतिगत मुद्दों में क्षमता को मजबूत करने के लिए, एनआईपीएचएम ने यूएसएआईडी/यूएसडीए के सहयोग से पहल की है । यूएसडीए/यूएसएआईडी के साथ सहयोग को कृषि एवं सहकारिता विभाग (डीएसी) और विदेश मंत्रालय (एमईए) द्वारा अनुमोदित किया गया है । एनआईपीएचएम और यूएसडीए द्वारा संयुक्त रूप से सहयोगी गतिविधियों के क्षेत्रों पर कार्य योजना विकसित की गई है । कृषि एवं सहकारिता विभाग ने कार्य योजना को मंजूरी दे दी है । एनआईपीएचएम संकाय से जुड़े यूएसडीए/एपीएचआईएस के तकनीकी विशेषज्ञों ने कई अंतरराष्ट्रीय और राष्ट्रीय क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित किए।

2. फॉस्फीन धूमन की प्रभावकारिता में ताप एवं CO2 के ऊंचे स्तर की सहक्रियात्मक भूमिका का मूल्यांकन - यूएसडीए के साथ सहयोगात्मक अनुसंधान परियोजना

फॉस्फीन, कार्बन डाइऑक्साइड और तापमान के विभिन्न संयोजनों में महत्वपूर्ण परिणाम दिखाते हुए सात परीक्षण कीट प्रजातियां (ट्रोगोडर्मा ग्रेनेरियम, ट्रिबोलियम कैस्टेनम, राइजोपर्था डोमोनिका, सिटोफिलस ओरिजे, कैलोसोब्रुचस चिनेंसिस, स्टेगोबियम पैनिकियम और लेसियोडर्मा सेरिकोर्न) पाई गईं। ट्रोगोडर्मा ग्रेनेरियम और अन्य कीड़े फॉस्फीन के साथ सीओ 2 संयोजन के साथ 40 डिग्री सेल्सियस तापमान पर छह से सात दिनों में 100% मृत्यु दर है ।

3. यूएसडीए के साथ विभिन्न प्रकार के ट्रैप-सहयोगी अनुसंधान परियोजना का डिजाइन और निर्माण

4. कृषि, मत्स्य पालन और वानिकी विभाग डीएएफएफ, ऑस्ट्रेलिया – एनआईपीएचएम सहयोग

एनआईपीएचएम ने डीएएफएफ ऑस्ट्रेलिया के सहयोग से नई दिल्ली में नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, मालदीव, श्रीलंका और भारत के अधिकारियों के लिए स्वच्छता और पादप स्वच्छता (एसपीएस) जागरूकता पर एक कार्यशाला का आयोजन किया। स्वच्छता और पादप स्वच्छता (एसपीएस) जागरूकता पर दूसरी कार्यशाला श्रीलंका में आयोजित की गई ।

5. आक्रमक खरपतवार एम्‍ब्रोसिया सिलोटेकिया का उन्‍मूलन

कर्नाटक के तुमकुर जिले में एक अप्रिय रैगवीड होने की सूचना मिली थी और बाद में इसकी पहचान एम्ब्रोसिया साइलोस्टाच्या डीसी के रूप में की गई, जो मैक्सिकन और उत्तरी अमेरिकी मूल का एक आक्रामक खरपतवार है । खरपतवार भारत के लिए संगरोध महत्व का है और पीक्‍यू आदेश, 2003 की अनुसूची VII के तहत संगरोध खरपतवार के रूप में विनियमित है। यह खरपतवार अपने मूल और शुरू की गई सीमा में अत्यधिक आक्रामक है । खरपतवार के नकारात्मक प्रभावों का अनुभव आक्रमित वन और कृषि-पारिस्थितिकी तंत्र और सार्वजनिक और सामाजिक भूमि में हो रहा है । इसके आगे के प्रसार को रोकने और बाद में उन्मूलन के लिए खरपतवार को नियंत्रित करने की आवश्यकता है । इसके प्रसार की सीमा का आकलन करने और आगे प्रसार को रोकने और इसके उन्मूलन की योजना बनाने के उद्देश्य से एम्ब्रोसिया साइलोस्टाच्य के लिए एक परिसीमन सर्वेक्षण किया गया था ।

आक्रामक खरपतवार का उन्मूलन

6. एल्युमिनियम फॉस्फाइड के साथ कॉफी बीन्स के धूमन पर अध्ययन-कॉफी अनुसंधान संस्थान के साथ सहयोगात्मक परियोजना

कॉफी बेरी बोरर के संदर्भ में कॉफी बीन्स के एएलपी फ्यूमिगेशन की प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने और कॉफी बेरी बोरर के अंडे सहित सभी चरणों की मृत्यु दर पर एल्युमिनियम फॉस्फाइड फ्यूमिगेशन के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए इस परियोजना को सेंट्रल कॉफी रिसर्च इंस्टीट्यूट, चिकमगलूर, कर्नाटक के साथ सहयोग किया गया है और अनुसंधान भी शुरू किया गया है । प्रयोगशाला में कीड़ों का बड़े पैमाने पर गुणन किया गया है ।

7. गेहूं, दालों और लकड़ी के लिए मिथाइल ब्रोमाइड फ्यूमिगेशन के विकल्प फ्यूमिगेशन-डीएसी परियोजना

इस परियोजना को मुख्य रूप से दालों में पल्स बीटल के संदर्भ में, गेहूं एवं चावल की घुन (सिटोफिलस ओरिजे) एवं लकड़ी में लिक्टिड बीटल और दीमक में एएलपी धूमन की प्रभावकारिता का मूल्यांकन करने के लिए कृषि एवं सहकारिता विभाग द्वारा फंड मुहैया करवाया गया है और सहयोग किया गया है ।

8. आयात और निर्यात हेतु भंडारित अनाज कीटों और फल मक्खियों के लिए कंप्यूटर सहायता प्राप्त डिजिटल पहचान कुंजी

निर्णय लेने और कीट और रोग की प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली में जांच एवं पहचान बहुत महत्वपूर्ण है । भंडारित अनाज कीट और फल मक्खी की पहचान के लिए डिजिटल इंटरेक्टिव कुंजियाँ (वर्णनात्मक और चित्रात्मक) तैयार की गई हैं और सार्वजनिक उपयोग के लिए एनआईपीएचएम की वेबसाइट पर अपलोड किया गया है । तथ्य पत्रक, शब्दावली और सूक्ष्म चित्र शामिल हैं।

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9. आक्रामक खरपतवार आक्रमण के लिए पूर्व चेतावनी और तैयार प्रतिक्रिया प्रणाली विकसित करके एसई एशियाई देशों में खाद्य सुरक्षा की रक्षा करना- वैश्विक चुनौतियां अनुसंधान कोष-यूके

परियोजना का उद्देश्य खरपतवार जोखिम विश्लेषण, कृषि अर्थशास्त्र, कृषि डेटा संग्रह, जैव-आर्थिक मॉडलिंग और डिजिटल प्रौद्योगिकी में विशेषज्ञों को एक साथ लाना था । भारत, भूटान और यूनाइटेड किंगडम के पौध संरक्षण नीति-निर्माताओं और शिक्षकों को उपर्युक्त उपकरणों के विकास और मूल्यांकन के लिए हितधारकों की आवश्यकताओं और संसाधन आवश्यकताओं की पहचान करना है ।

10. 13. उत्‍तेजित लूमिंग वनस्‍पति पीड़क खतरों और घरेलू संगरोध पीड़कों की प्राथमिकता, एवं कीट स्थापना के लिए भौगोलिक संभावित क्षेत्रों की पहचान

आईएसपीएम 2 की धारा 2.2.2.2 के अनुसार (कीट जोखिम विश्लेषण के लिए दिशानिर्देश; पादपस्‍वच्‍छता उपायों के लिए अंतर्राष्ट्रीय मानक 2; आईपीपीसी, 2019), पीआरए क्षेत्र में कीट के ज्ञात वितरण पर जलवायु डेटा की तुलना करने के लिए जलवायु मॉडलिंग सिस्टम का उपयोग किया जा सकता है एवं साथ ही कीटों के उनके निवास/ठहने की संभावना का आकलन किया जाता है । इसके अलावा, पीआरए प्रशिक्षण मैनुअल (एफएओ, 2007) की धारा 4.3.2.2 के अनुसार, विश्लेषण में पीआरए क्षेत्र में भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) के इस्‍तेमाल हेतु विश्‍लेषण करने तथा मैप संभावित कीट वितरण एवं मॉडल के लिए अन्य कम्प्यूटरीकृत सिस्टम जैसे क्लाइमेक्स का उपयोग शामिल हो सकता है। इसलिए, पीड़क स्थापना के लिए संभावित संकटग्रस्त क्षेत्रों का अनुमान लगाने के लिए क्‍लाईमेक्‍स (CLIMEX) मॉडलिंग प्रणाली लागू की जाती है ।

11. प्रमुख हरी पत्तेदार सब्जियों के निर्यात के लिए शेल्फ लाइफ और पैकिंग सामग्री पर अध्ययन

पालक, ऐमारैंथस, मेथी, पर्सलेन और रोसेल जैसी हरी पत्तेदार सब्जियों को विभिन्न पैकिंग सामग्री में पैक किया गया था और उनके शेल्फ जीवन का अध्ययन करने के लिए कमरे के तापमान और प्रशीतित स्थिति में रखा गया था ।

12. रंगारेड्डी जिले, तेलंगाना में विभिन्न सब्जी फसलों के चूसने वाले कीट परिसर की घटनाओं पर सर्वेक्षण

वर्ष 2020-2021 के दौरान रंगारेड्डी जिले, तेलंगाना में उगाई जाने वाली प्रमुख सब्जी फसलों से जुड़े विभिन्न पीड़कों और प्राकृतिक शत्रुओं की स्थिति जानने के लिए एक सर्वेक्षण किया गया था। रंगारेड्डी जिले के पापीरेड्डीगुडा, लेमुर, चेनवेली, पेद्दाशापुर, चेगुर और कंडुवाड़ा गांवों को रोविंग सर्वेक्षण के तहत पीड़क की घटनाओं को दर्ज करने के लिए चुना गया था।

13. वनस्‍पति स्‍वास्‍थ्‍य क्लीनिक की स्‍थापना

कृषकों को पीड़क/रोग/अन्य परामर्शी समाधान तथा पर्यावरण हितैषी नियंत्रण उपाय उपलब्ध कराया गया । रंगारेड्डी, सूर्यापेट, वारंगल अर्बन और वारंगल रूरल के सभी चयनित 22 गांवों में प्रदर्शन/किट्स/प्रशिक्षण कार्यक्रम आदि का वितरित की गई । रंगारेड्डी, सूर्यापेट, वरंगल अर्बन और वरंगल रूरल में प्रत्येक में वनस्‍पति स्‍वास्‍थ्‍य क्लीनिक की स्थापना की ।

14. हैदराबाद शहर में विभिन्न मानव आवास में कृन्तकों के प्रभाव पर अध्ययन

शहरी वातावरण में मानव और चूहों के बीच घनिष्ठ संबंध ने कई जूनोटिक रोगों के फैलने की संभावना को बढ़ा दिया है और महत्वपूर्ण रुग्णता और मृत्यु दर का कारण बना । हर साल जूनोटिक केस संख्या बढ़ रही है । इसलिए, पर्यावरणीय कारकों के प्रभाव को समझने की आवश्यकता है, जो शहरी परिस्थितियों में कृंतक आबादी की वृद्धि के पक्ष में हैं ।

15. कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में जंगली सूअर प्रबंधन मॉड्यूल का विकास

कृषि पारिस्थितिकी तंत्र में जंगली सूअर के प्रभावी प्रबंधन के लिए उपलब्ध विभिन्न व्यवहार्य एकीकृत प्रबंधन मॉड्यूल का मूल्यांकन किया गया । सिंगल टियर मॉड्यूल में, सर्कुलर रेजर ब्लेड वायर और बायोएकॉस्टिक्स उपचार अत्यधिक प्रभावी थे और जंगली सूअर से होने वाले नुकसान से बचने के लिए पूर्ण सुरक्षा प्रदान करते थे । टू टियर मॉड्यूल में, फिशनेट + कोकोनट कॉयर को सुअर के तेल से उपचारित किया गया और बायोफेंस + बायोएकॉस्टिक्स सिस्टम ने जंगली सूअर द्वारा नुकसान से फसलों को पूर्ण सुरक्षा प्रदान की। थ्री टियर मॉड्यूल के मामले में फिशनेट + ट्रीटेड कोकोनट कॉयर (सुअर का तेल) + बायोएकॉस्टिक्स ने बिना किसी नुकसान के जंगली सूअर से फसल की रक्षा की है।


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